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बीए सेमेस्टर-1 गृह विज्ञान

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :250
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2634
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-1 गृहविज्ञान

13

 

प्रारम्भिक बाल्यावस्था

(Early Childhood)

 

 

प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।

उत्तर-

संवेग
(Emotion)

'संवेग' शब्द अंग्रेजी भाषा के 'Emotion' का हिन्दी रूपान्तर है | Emotion लैटिन भाषा के 'Emover' शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है 'To move' To stirred up, To arouse, to excited" अर्थात् “हिला देना", "उत्तेजित रकना", "भड़क उठना" या "उद्दीप्त होना"। अतः जब संवेगों की उत्पत्ति होती है तो व्यक्ति का शरीर उत्तेजित व उद्वेलित हो जाता है। इस उद्वेलित/उत्तेजित अवस्था को ही 'संवेग' कहते हैं और इस उत्तेजना का प्रकटीकरण व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही व्यवहारों में परिलक्षित होता है। उत्तेजना के कारण शरीर की आँतरिक एवं बाह्य दोनों ही दशाओं में व्यापक परिर्तन हो जाता है जैसे― चेहरे के रंग एवं भाव में परिवर्तन, हाथों एवं पैरों में परिवर्तन, नाड़ी गति एवं रक्तचाप में परिवर्तन, साँस की क्रिया में तेजी होना, व्यक्ति का मन उद्विग्न होना आदि।

संवेग व्यक्ति को झकझोर कर रख देता है। एक क्रोधित व्यक्ति का अवलोकन करें तो पायेंगे कि उसका चेहरा क्रोध से लाल, दाँत किटकिटाते हुए होंठ फड़फड़ाते हुए, मुट्ठियाँ भींची हुई, हाथ एवं पैर तने हुए तथा सम्पूर्ण शरीर इतना अधिक उत्तेजित एवं उद्वेलित दिखाई देता है कि वह व्यक्ति क्रोध में न जाने क्या कर देगा? इसी प्रकार एक प्रसन्नचित व्यक्ति का अवलोकन करें तो पायेंगे कि उसका चेहरा खुशी से झूमता हुआ, आँखों में आकर्षण, होंठ मीठी बोल के लिए आतुर हाथ स्वागत-सत्कार के लिए तत्पर एवं सम्पूर्ण शरीर से खुशियाँ प्रस्फुटित होता हुआ प्रतीत होता है। उसके रोम-रोम में खुशी का समावेश होता हुआ दिखाई देता है। इसी प्रकार दुख से पीड़ित व्यक्ति संवेग के कारण इतना अधिक शांत, स्तम्भित एवं अवाक् रह जाता है कि वह सामान्य क्रियाएँ भी सम्पन्न नहीं कर पाता है। उसकी नींद, भूख प्यास सभी कुछ गायब हो जाती है। उदाहरण- जवान बेटे की मृत्यु के बाद माँ-बाप को जो पुत्र शोक होता है, और भरी जवानी में पति की मृत्यु के उपरांत पत्नी को जो शोक होता है, वह इसका ज्वलंत उदाहरण है। रामायण में भी, संवेगों के विविध उदाहरण देखने को मिलते हैं। राम के वनवास की बात सुनकर ही अयोध्या नरेश दशरथ पुत्र शोक के संवेग से इतना अधिक विचलित हो गये थे कि उन्होंने अपना प्राण ही त्याग दिये। उपरोक्त विवेचन के आधार पर निसंकोच कहा जा सकता है कि "व्यक्ति के भावों की उद्वेलित अवस्था ही संवेग कहलाती है। "

संवेग की परिभाषाएँ
( Definitions of Emotions)

विभिन्न विद्वानों ने संवेग को अपने-अपने तरीके से परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नानुसार हैं-

(1) English & English के अनुसार, “संवेग एक जटिल भावना की अवस्था है। इसमें क्रियात्मक एवं ग्रंथीय क्रियाएँ होती हैं। अथवा संवेग वह जटिल व्यवहार है जिसमें आँतरिक अवयवों की क्रियाएँ महत्वपूर्ण होती हैं। "

(2) पी० टी० यंग के अनुसार, "संवेग व्यक्ति का तीव्र मनोवैज्ञानिक उपद्रव है जिसकी उत्पत्ति मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है तथा इसमें व्यवहार, चेतन, अनुभूति, अनुभव और आँतरिक अवयवों की क्रियाएँ सम्मिलित रहती है।"

(3) जेम्स ड्रेवर के अनुसार, “संवेग शरीर की वह जटिल अवस्था है जिसमें साँस लेने, नाड़ी गति, ग्रंथिल उत्तेजना, मानसिक दशा, अवरोध आदि की अनुभूति पर प्रभाव पड़ता है तथा उसी के अनुसार मांसपेशियाँ व्यवहार करने लगती हैं।"

( 4) H.J. Eysenck एवं साथियों के अनुसार, “संवेग एक जटिल अवस्था है जिसमें व्यक्ति किसी चीज या परिस्थिति को अधिक बढ़ा हुआ प्रत्यक्षीकरण करता है। इसमें वृहत् स्तर पर शारीरिक परिवर्तन होते हैं, जिससे व्यक्ति का व्यवहार approach या withdrawl की ओर संगठित होता है तथा अनुभूति आकर्षण या विकर्षण की सूचना देता है।"

(5) Mc Dugall के अनुसार, “Emotion is the mode of experience that accompanies the working of an instinctive impulse. An emotion which is accompanied with the working of instants is known as a primary emotion and all other types of emotions are secondary."

(6) Munn के अनुसार, “Emotions are accurate disturbances of the individual as a whole. psychological in origin, involving behaviour. consions experiences and verbal functioning."

उपरोक्त परिभाषाओं के अध्ययन से संवेग के सम्बन्ध में निम्न बातें दृष्टिगोचर होती हैं

(1) संवेग अचानक हुई बाह्य एवं आँतरिक उद्दीपकों के फलस्वरूप प्रकट होते हैं।-

(2) संवेग, तंत्रिका तंत्र एवं मस्तिष्क को प्रभावित करते हैं।

(3) व्यक्ति के सम्पूर्ण शरीर एवं चेहरे पर संवेगों का भाव परिलक्षित होता है।

(4) व्यक्ति के शारीरिक एवं मानसिक दशाओं में परिवर्तन हो जाता है।

(5) व्यक्ति में विकट से विकट परिस्थिति में कार्य करने की क्षमता प्रकट हो जाती है, वह असंभव कार्य को भी संभव कर दिखाता है।

(6) संवेग मानव व्यवहार का असामान्य ढंग है। सरल शब्दों में संवेग को निम्न प्रकार से परिभाषित किया जा सकता है-

"संवेग व्यक्ति की वह जटिल अवस्था है जिसकी उत्पत्ति आँतरिक एवं बाह्य उद्दीपकों एवं मनोवैज्ञानिक कारणों से होती है तथा इसके कारण व्यक्ति के व्यवहार चिन्तन, चेतनता, अनुभव, अनुभूति, प्रत्यक्षीकरण आदि में परिवर्तन हो जाते हैं जो व्यक्ति के चेहरे के हाव-भाव एवं शरीर के सम्पूर्ण भावों के द्वारा परिलक्षित होते हैं। इन्हीं भावों को संवेग कहते हैं।"

परन्तु यह न भूलें कि "संवेग व्यक्ति को आकस्मिक परिस्थितियों से निपटने का साहस, धैर्य एवं बल भी प्रदान करता है, जिससे वह अपनी सुरक्षा विषम-से-विषम परिस्थिति में भी कर लेता है। संवेगों की उपस्थिति के कारण थाएरॉइड ग्रंथि से थायरॉक्सिन हारमोन का अत्यधिक मात्रा में स्रावण होने लगता है जिससे उसकी क्रियाशीलता बढ़ जाती है और व्यक्ति ‘Fly' या 'Fight' की नीति अपनाकर खतरनाक परिस्थितियों से अपनी रक्षा कर लेता है।

संवेग की दशायें
(Conditions of Emotions)

(1) बाह्य शारीरिक दशायें (External Physical Conditions) - संवेग की इस स्थिति में शरीर के बाह्य दशाओं में परिवर्तन आ जाता है, जैसे― चेहरे का हाव-भाव बदल जाना, हाथ-पैरों को पटकना, मट्टियाँ भिच जाना, आवाज बदल जाना, आँखें क्रोध से लाल हो जाना या फिर प्यार के लिए आतुर होना, होंठ फड़फड़ाना, माथे पर बल/ लकीरें पड़ जाना, भौंहे तन जाना, आँखों से आँसू निकलना, शरीर का काँपना, चेहरा लाल हो जाना आदि।

(2) आँतरिक शारीरिक दशायें (Internal Physical Conditions) - संवेग की इस स्थिति में, बाह्य शारीरिक परिवर्तनों के साथ-साथ आँतरिक अंगों में भी परिवर्तन आ जाते हैं जैसे- नाड़ी गति बढ़ जाना, साँस का तेज-तेज चलना, रक्तचाप में परिवर्तन, रक्त की रासायनिक संगठन में परिवर्तन, शरीर की होमियोस्टैसिस (Homeostasis) में परिवर्तन, अंत: स्रावी ग्रंथियों (Endocrine glands) तथा पाचक रसों (Digestive Juices) की क्रियाओं में परिवर्तन आदि।

बालकों के संवगों का महत्व
( Importance of Children's Emotions)

बालकों के जीवन में संवेगों का अत्यंत ही महत्वपूर्ण स्थान है, क्योंकि बालक ही समय परिवर्तन के साथ पल-बढ़कर युवा व्यक्ति बनते हैं जिसके कंधों पर भारत का भविष्य टिका रहता है। संवेग बालक के सर्वांगीण विकास में सहायक होते हैं। व्यक्तित्व विकास एवं सामाजिक समायोजन में संवेगों की अग्रणी भूमिका होती है। बालकों के जीवन में संवेगों का महत्व निम्नानुसार है-

(1) हर्ष एवं आनंद की अनुभूति (Feeling of Joy and Happiness) - संवेगों में बालकों को हर्ष, खुशी, आनंद, उल्लास एवं उत्साह की अनुभूति होती है। फलतः उसमें सकारात्मक गुणों का विकास होता है। वह बहुमुखी प्रतिभा का धनी व्यक्ति बनता है। उसका व्यक्तित्व सुन्दर, सजीला एवं आकर्षक होता है। याद रहे। सकारात्मक संवेगों की अनुभूति से जहाँ बालकों को सुख, शांति एवं प्रसन्नता मिलती है, वहीं वह नकारात्मक संवेगों को प्रकट कर वह अपने भीतर छिपे हुए क्रोध, ईर्ष्या, आक्रोश, जलन आदि को बाहर निकाल देता है। फलतः वह तनावमुक्त होकर आनंदमय जीवन जीता है। अतः स्पष्ट है कि संवेगों से, बालकों को हर्ष, खुशी एवं आनंद की अनुभूति होती है।

वैज्ञानिक भी इस बात से शत-प्रतिशत सहमत हैं कि आनंद एवं सुख की स्थिति में शरीर की सभी पेशियाँ तनावमुक्त हो जाती हैं जिससे शरीर को आराम पहुँचता है। उसकी पेशियों के भीतर विद्यमान लैक्टिक अम्ल सहित सभी दूषित पदार्थ बाहर निकल जाते हैं। फलतः उसका रोम-रोम हर्षित हो जाता है। और ये भाव उसके चेहरे की खुशी के माध्यम से प्रकट होते हैं। चेहरे की मुस्कराहट अथवा खिलखिलाकर हँसना इसका द्योतक होता है।

(2) सामाजिक समायोजन में सहायक (Helpful in Social Adjustment) - संवेग बालकों को सामाजिक समायोजन स्थापित करने में भी अमूल्य भूमिका निभाता है। यदि बालक आनंददायक संवेगों को जीवन में अपनाकर अच्छी आदतों का निर्माण कर लेता है तो उसका समायोजन स्कूल के साथियों आस-पड़ोस के बालकों एवं समाज के साथ अच्छा होता है। परन्तु यदि बालक अपने जीवन में कष्टदायी एवं नकारात्मक संवेगों को अपनाते हैं। तो उन्हें सामाजिक समायोजन में भारी कठिनाई का सामना करना पड़ता है।

(3) आदतों के निर्माण में सहायक (Helpuful in Habits Formation) - संवेग से बालकों में अच्छी आदतों का निर्माण होता है। जब बालकों को सकारात्मक संवेगों की अभिव्यक्ति से सुख की अनुभूति होती है, दूसरे लोग उसकी प्रशंसा करते हैं, माता-पिता एवं शिक्षक बालक को प्रोत्साहित करते हैं तो बालक उस संवेगात्मक अनुक्रियाओं की पुनरावृत्ति बार-बार करता है जो बाद में चलकर उसकी आदत में परिणत (बदल) हो जाता है और बालक अच्छी आदतों को सीखकर उसे जीवन में अपना लेता है।

(4) भाषा विकास में सहायक (Helpful in Language Development) - संवेगों से शरीर की क्रियाशीलता बढ़ जाती है जिससे उसकी आवाज में परिवर्तन आ जाता है। वह किसी भी चीज को, चाहे वह कविता हो या कहानी अथवा सामान्य बातचीत ही जोर-जोर से चिल्ला-चिल्लाकर कहने लगता है जिससे उसकी गला, स्वरयंत्र, जीभ, होंठ एवं जबड़ों की मांसपेशियाँ परिपक्व होती हैं और भाषा विकास में सहायक होती हैं। इसके ठीक विपरीत यदि बालक अपनी शारीरिक क्रियाशीलता से घुटन पैदा करता है जिससे उसका भाषा विकास तो प्रभावित होता ही है उसका व्यक्तित्व भी कुंठित हो जाता है। उसके भीतर नकारात्मक गुणों का साम्राज्य हो जाता है जो व्यक्तित्व विकास में बाधा पहुँचाता है।

(5) संप्रेषण में सहायक (Helpful in Communication) - संवेग संप्रेषण में भी बहुमूल्य भूमिका निभाता है। बालक अपने विचारों को, भावों को, शब्दों के माध्यम से तो व्यक्त करते ही हैं। साथ ही वे अपने चेहरे के हाव-भाव तथा 'Body Language' के माध्यम से भी व्यक्त करते हैं। दूसरे लोग बालक के विचारों, तर्कों एवं भावों से कितना अधिक एवं किस हद तक सहमत या असहमत हैं उसे भी वह उनके चेहरे के हाव-भाव एवं Body language को देखकर समझ जाता है और उसी के अनुसार सुधार भी करता है।

(6) आत्म मूल्यांकन एवं सामाजिक मूल्यांकन में सहायक (Helpful in Self and Social Evaluation) - बच्चे संवेगों के माध्यम से अपना स्वयं का आत्म मूल्यांकन तथा दूसरों का अर्थात् सामाजिक मूल्यांकन करते हैं। वे बच्चे जो दूसरों के ममक्ष सुखदायक संवेगों की अभिव्यक्ति अधिक मात्रा में करते हैं, समाज उन्हें पसंद करता है, उसका आदर करता है। फलतः वे लोकप्रिय होते हैं। खेल एवं विद्यालय के साथी उसे अपना नेता (Leader) मानता है। इसके विपरीत जो बालक दुखदायक संवेगों की अभिव्यक्ति अधिक मात्रा में करता है, उन्हें खेल के साथी भी बहुत ही कम पसंद करते हैं। समाज में भी उस बालक की निंदा होती है। समाज के लोग बालक को कितना अधिक पसंद / नापसंद करते हैं इस आधार पर बालक अपना स्वयं का मूल्यांकन करता है।

(7) संवेग शारीरिक क्रियाशीलता को बढ़ाते हैं (Emotions increase Physical Activities) - संवेग के कारण बालकों की शारीरिक क्रियाशीलता बढ़ जाती है। सकारात्मक संवेगों के कारण हृदय की धड़कनें बढ़ जाती हैं। नाड़ी गति बढ़ जाती है। मांसपेशियों की थकान कम हो जाती है। यकृत से अधिक मात्रा में ग्लाइकोजन (Carbohydrate) निकलने लगता है। थाएरॉइड एवं एड्रीनल ग्रंथियों से हारमोन का अधिक स्रावन होने लगता है। फलतः बालक क्रियाशील हो जाता परन्तु यदि बालक इस बढ़ी हुई क्रियाशीलता का उपयोग सृजनात्मक कार्यों के निर्माण में नहीं कर पाता है तो वह उदास, निराश, चिड़चिड़ा, एवं नर्वस (Nervous) हो जाता है। उसमें कई प्रकार के व्यवहारात्मक दोष उत्पन्न हो जाते हैं जैसे—अँगूठा चूसना, नाखून चबाना, बात-बात पर क्रोधित होना, बिस्तर पर पेशाब करना, दूसरों को अपनी ओर आकर्षित करने के लिए ऊटपटांग हरकतें करना आदि।

(8) संवेग मानसिक क्रियाओं में बाधा पहुँचाते हैं (Emotions Interferes Mental Activities) - तीव्र नकारात्मक संवेगों जैसे- ईर्ष्या, क्रोध, भय आदि के कारण बालक उद्वेलित हो जाता है। फलतः उसमें सीखने, सोचने, समझने, तर्क करने, स्मरण करने एकाग्रता, ध्यान लगाने आदि पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। इस कारण वह अपनी क्षमता एवं बुद्धिलब्धि (I.Q.) की तुलना में बहुत ही कम अभिव्यक्त कर पाता है। परिणामतः वह शैक्षणिक एवं सह-शैक्षणिक गतिविधियों में अन्य बालकों की तुलना में काफी पीछे रह जाता है। वह व्यवहार कुशल भी नहीं हो पाता है। जो बालक सदैव ही ईर्ष्या, क्रोध, भय व चिन्ता से ग्रस्त रहता है वह पढ़ाई में कमजोर हो जाता है।

(9) संवेग बहुत से कार्यों के प्रेरक होते हैं (Emotions are Motivatiers for Many Activity) - बहुत से संवेग ऐसे होते हैं जो दुश्मनों के प्रति घृणा एवं क्रोध उत्पन्न करते हैं तथा देश एवं समाज के लिए हँसते हुए सर्वस्व न्योछावर कर देने की प्रेरणा देते हैं। आजादी की लड़ाई में देश का बच्चा-बच्चा अपना बलिदान देने के लिए तत्पर था। क्रांतिकारियों ने संवेग के कारण ही फाँसी के फंदे को भी हँसते हुए चूम लिया।

(10) संवेग बालकों के जीवन में रंग भरते हैं (Emotions Colour Children's Outlooks on Life) - सकारात्मक संवेगों की अभिव्यक्ति से बालकों को खेल के साथियों एवं समाज के लोगों द्वारा प्रशंसा मिलती है। फलतः वह सकारात्मक संवेगों को बार-बार दुहराने के लिए प्रेरित होता है और अपने जीवन को आनंदमय बनाता है। उसके कई अच्छे दोस्त बन जाते हैं जिनके बीच वह अपनी खुशियों को बाँटकर आनंदित होता है। अतः संवेग बालकों के जीवन में रंग भरते हैं तथा सरसता एवं आकर्षण उत्पन्न करते हैं। यदि बालक स्वस्थ रहता है तो उसका जीवन सुखदायक बनता है। परन्तु यदि बालक समाज में नकारात्मक संवेगों जैसे-दुख, चिन्ता, क्रोध, ईर्ष्या आदि की अभिव्यक्ति अधिक करता है तो उसे खेल के साथी एवं समाज के लोग कम ही पसंद करते हैं।

(11) संवेग सामाजिक अन्तःक्रियाओं को प्रभावित करते हैं (Emotions Affect Social Interaction) - सभी प्रकार के संवेग चाहे वे नकारात्मक हों या सकारात्मक, सामाजिक अंतः क्रियाओं को प्रभावित करते ही हैं। स्नेह, प्यार, दुलार एवं खुशी संवेगों से बालक का सामाजिक विकास अच्छा होता है। जो बालक निराश, उदास, दुःखी एवं खिन्न रहता है उसका सामाजिक विकास अच्छा नहीं होता है। अतः बालक आसानी से समझ जाता है कि किन-किन संवेगों की अभिव्यक्ति से उसे प्रशंसा एवं लोकप्रियता मिलती है और किन-किन से निन्दा | इस आधार पर वह स्वयं के व्यवहार में परिवर्तन लाता है।

(12) संवेग मनोवैज्ञानिक वातावरण को प्रभावित करते हैं (Emotions Affect the Psychological climate) - चाहे घर हों, स्कूल हों या आस-पड़ोस, यदि बच्चे आनंदित, हर्षित एवं खुश रहते हैं तो सम्पूर्ण वातावरण ही लुभावना एवं खुशनुमा हो जाता है। स्वस्थ्य बच्चे आँगन में खेलते-कूदते और किलकारियाँ भरते नजर आते हैं। सम्पूर्ण वातावरण गुलाब की क्यारियों की तरह महक उठता है। परन्तु यदि बालक नकारात्मक संवेगों जैसे- क्रोध, डर, ईर्ष्या, चिन्ता आदि से ग्रस्त है तो न केवल घर का, बल्कि स्कूल एवं आस-पड़ोस का वातावरण भी खराब हो जाता है। सर्वत्र उदासी छा जाती है। माता-पिता और दूसरे लोग भी ऐसे बालक को बहुत ही कम पसंद करते हैं और ऐसा बालक 'Unhappy child' या 'Unwanted child' की श्रेणी में गिना जाता है।

(13) संवेगों की अभिव्यक्ति चेहरे से स्पष्ट झलकती है (Emotions Leave Their Mark on Facial Expressions) - संवेग चाहे सकारात्मक हों या नकारात्मक इसकी अभिव्यक्ति चेहरे पर स्पष्ट दिखाई देती है। हर्ष, आनंद एवं खुशी संवेगों की अभिव्यक्ति से बालक का चेहरा हँसता - मुस्कराता नजर आता है। उसकी आँखों में एक विशेष प्रकार का आकर्षण होता है। हँसते समय दाँत मोतियों की माला की भाँति चमकते हुए दिखाई पड़ते हैं। उसके रोम-रोम से खुशियाँ प्रस्फुटित होती हुई नजर आती हैं। उसका चेहरा सुन्दर एवं आकर्षक दिखता है। फलतः लोग स्वतः ही ऐसे बालक के प्रति आकर्षित हो जाते हैं और उसे प्यार करने लगते हैं। परन्तु यदि बालक तुनकमिजाजी है और बात-बात पर गुस्सा करता है या रोता है तो ये भाव भी उसके चेहरे पर स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं, जिसे बहुत कम लोग ही पसंद करते हैं।

(14) संवेगात्मक तनाव गत्यात्मक दक्षता में अवरोध उत्पन्न करते हैं (Emotional Tensions Disrupts Motor Skills) - संवेगात्मक तनाव से कार्य सीखने एवं करने की क्षमता में काफी कमी आ जाती है।

संवेगात्मक तनाव के कारण बालक किसी भी काम को दक्षतापूर्वक नहीं कर पाता है। जैसे ही वह काम करना चाहता है, उसके मन के भीतर इतना अधिक डर व्याप्त हो जाता है कि चीजें उसके हाथ से छूटकर गिर जाती हैं। फलतः बालक सहम जाता है। इस कारण उसे फूहड़ बालक की संज्ञा दी जाती है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- पारम्परिक गृह विज्ञान और वर्तमान युग में इसकी प्रासंगिकता एवं भारतीय गृह वैज्ञानिकों के द्वारा दिये गये योगदान की व्याख्या कीजिए।
  2. प्रश्न- NIPCCD के बारे में आप क्या जानते हैं? इसके प्रमुख कार्यों का वर्णन कीजिए।
  3. प्रश्न- 'भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद' (I.C.M.R.) के विषय में विस्तृत रूप से बताइए।
  4. प्रश्न- केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसंधान परिषद (CFTRI) के विषय पर विस्तृत लेख लिखिए।
  5. प्रश्न- NIPCCD से आप समझते हैं? संक्षेप में बताइये।
  6. प्रश्न- केन्द्रीय खाद्य प्रौद्योगिक अनुसंधान संस्थान के विषय में आप क्या जानते हैं?
  7. प्रश्न- भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  8. प्रश्न- कोशिका किसे कहते हैं? इसकी संरचना का सचित्र वर्णन कीजिए तथा जीवित कोशिकाओं के लक्षण, गुण, एवं कार्य भी बताइए।
  9. प्रश्न- कोशिकाओं के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  10. प्रश्न- प्लाज्मा झिल्ली की रचना, स्वभाव, जीवात्जनन एवं कार्यों का वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- माइटोकॉण्ड्रिया कोशिका का 'पावर हाउस' कहलाता है। इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  12. प्रश्न- केन्द्रक के विभिन्न घटकों के नाम बताइये। प्रत्येक के कार्य का भी वर्णन कीजिए।
  13. प्रश्न- केन्द्रक का महत्व समझाइये।
  14. प्रश्न- पाचन तन्त्र का सचित्र विस्तृत वर्णन कीजिए।
  15. प्रश्न- पाचन क्रिया में सहायक अंगों का वर्णन कीजिए तथा भोजन का अवशोषण किस प्रकार होता है?
  16. प्रश्न- पाचन तंत्र में पाए जाने वाले मुख्य पाचक रसों का संक्षिप्त परिचय दीजिए तथा पाचन क्रिया में इनकी भूमिका स्पष्ट कीजिए।
  17. प्रश्न- आमाशय में पाचन क्रिया, छोटी आँत में भोजन का पाचन, पित्त रस तथा अग्न्याशयिक रस और आँत रस की क्रियाविधि बताइए।
  18. प्रश्न- लार ग्रन्थियों के बारे में बताइए तथा ये किस-किस नाम से जानी जाती हैं?
  19. प्रश्न- पित्ताशय के बारे में लिखिए।
  20. प्रश्न- आँत रस की क्रियाविधि किस प्रकार होती है।
  21. प्रश्न- श्वसन क्रिया से आप क्या समझती हैं? श्वसन तन्त्र के अंग कौन-कौन से होते हैं तथा इसकी क्रियाविधि और महत्व भी बताइए।
  22. प्रश्न- श्वासोच्छ्वास क्या है? इसकी क्रियाविधि समझाइये। श्वसन प्रतिवर्ती क्रिया का संचालन कैसे होता है?
  23. प्रश्न- फेफड़ों की धारिता पर टिप्पणी लिखिए।
  24. प्रश्न- बाह्य श्वसन तथा अन्तःश्वसन पर टिप्पणी लिखिए।
  25. प्रश्न- मानव शरीर के लिए ऑक्सीजन का महत्व बताइए।
  26. प्रश्न- श्वास लेने तथा श्वसन में अन्तर बताइये।
  27. प्रश्न- हृदय की संरचना एवं कार्य का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  28. प्रश्न- रक्त परिसंचरण शरीर में किस प्रकार होता है? उसकी उपयोगिता बताइए।
  29. प्रश्न- हृदय के स्नायु को शुद्ध रक्त कैसे मिलता है तथा यकृताभिसरण कैसे होता है?
  30. प्रश्न- धमनी तथा शिरा से आप क्या समझते हैं? धमनी तथा शिरा की रचना और कार्यों की तुलना कीजिए।
  31. प्रश्न- लसिका से आप क्या समझते हैं? लसिका के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- रक्त का जमना एक जटिल रासायनिक क्रिया है।' व्याख्या कीजिए।
  33. प्रश्न- रक्तचाप पर टिप्पणी लिखिए।
  34. प्रश्न- हृदय का नामांकित चित्र बनाइए।
  35. प्रश्न- किसी भी व्यक्ति को किसी भी व्यक्ति का रक्त क्यों नहीं चढ़ाया जा सकता?
  36. प्रश्न- लाल रक्त कणिकाओं तथा श्वेत रक्त कणिकाओं में अन्तर बताइए?
  37. प्रश्न- आहार से आप क्या समझते हैं? आहार व पोषण विज्ञान का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध बताइए।
  38. प्रश्न- निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए। (i) चयापचय (ii) उपचारार्थ आहार।
  39. प्रश्न- "पोषण एवं स्वास्थ्य का आपस में पारस्परिक सम्बन्ध है।' इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  40. प्रश्न- अभिशोषण तथा चयापचय को परिभाषित कीजिए।
  41. प्रश्न- शरीर पोषण में जल का अन्य पोषक तत्वों से कम महत्व नहीं है। इस कथन को स्पष्ट कीजिए।
  42. प्रश्न- भोजन की परिभाषा देते हुए इसके कार्य तथा वर्गीकरण बताइए।
  43. प्रश्न- भोजन के कार्यों की विस्तृत विवेचना करते हुए एक लेख लिखिए।
  44. प्रश्न- आमाशय में पाचन के चरण लिखिए।
  45. प्रश्न- मैक्रो एवं माइक्रो पोषण से आप क्या समझते हो तथा इनकी प्राप्ति स्रोत एवं कमी के प्रभाव क्या-क्या होते हैं?
  46. प्रश्न- आधारीय भोज्य समूहों की भोजन में क्या उपयोगिता है? सात वर्गीय भोज्य समूहों की विवेचना कीजिए।
  47. प्रश्न- “दूध सभी के लिए सम्पूर्ण आहार है।" समझाइए।
  48. प्रश्न- आहार में फलों व सब्जियों का महत्व बताइए। (क) मसाले (ख) तृण धान्य।
  49. प्रश्न- अण्डे की संरचना लिखिए।
  50. प्रश्न- पाचन, अभिशोषण व चयापचय में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  51. प्रश्न- आहार में दाल की उपयोगिता बताइए।
  52. प्रश्न- दूध में कौन से तत्व उपस्थित नहीं होते?
  53. प्रश्न- सोयाबीन का पौष्टिक मूल्य व आहार में इसका महत्व क्या है?
  54. प्रश्न- फलों से प्राप्त पौष्टिक तत्व व आहार में फलों का महत्व बताइए।
  55. प्रश्न- प्रोटीन की संरचना, संगठन बताइए तथा प्रोटीन का वर्गीकरण व उसका पाचन, अवशोषण व चयापचय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  56. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों, साधनों एवं उसकी कमी से होने वाले रोगों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- 'शरीर निर्माणक' पौष्टिक तत्व कौन-कौन से हैं? इनके प्राप्ति के स्रोत क्या हैं?
  58. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट का वर्गीकरण कीजिए एवं उनके कार्य बताइये।
  59. प्रश्न- रेशे युक्त आहार से आप क्या समझते हैं? इसके स्रोत व कार्य बताइये।
  60. प्रश्न- वसा का अर्थ बताइए तथा उसका वर्गीकरण समझाइए।
  61. प्रश्न- वसा की दैनिक आवश्यकता बताइए तथा इसकी कमी तथा अधिकता से होने वाली हानियों को बताइए।
  62. प्रश्न- विटामिन से क्या अभिप्राय है? विटामिन का सामान्य वर्गीकरण देते हुए प्रत्येक का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  63. प्रश्न- वसा में घुलनशील विटामिन क्या होते हैं? आहार में विटामिन 'ए' कार्य, स्रोत तथा कमी से होने वाले रोगों का उल्लेख कीजिये।
  64. प्रश्न- खनिज तत्व क्या होते हैं? विभिन्न प्रकार के आवश्यक खनिज तत्वों के कार्यों तथा प्रभावों का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  65. प्रश्न- शरीर में लौह लवण की उपस्थिति, स्रोत, दैनिक आवश्यकता, कार्य, न्यूनता के प्रभाव तथा इसके अवशोषण एवं चयापचय का वर्णन कीजिए।
  66. प्रश्न- प्रोटीन की आवश्यकता को प्रभावित करने वाले कारक कौन-कौन से हैं?
  67. प्रश्न- क्वाशियोरकर कुपोषण के लक्षण बताइए।
  68. प्रश्न- भारतवासियों के भोजन में प्रोटीन की कमी के कारणों को संक्षेप में बताइए।
  69. प्रश्न- प्रोटीन हीनता के कारण बताइए।
  70. प्रश्न- क्वाशियोरकर तथा मेरेस्मस के लक्षण बताइए।
  71. प्रश्न- प्रोटीन के कार्यों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  72. प्रश्न- भोजन में अनाज के साथ दाल को सम्मिलित करने से प्रोटीन का पोषक मूल्य बढ़ जाता है।-कारण बताइये।
  73. प्रश्न- शरीर में प्रोटीन की आवश्यकता और कार्य लिखिए।
  74. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स के स्रोत बताइये।
  75. प्रश्न- कार्बोहाइड्रेट्स का वर्गीकरण कीजिए (केवल चार्ट द्वारा)।
  76. प्रश्न- यौगिक लिपिड के बारे में अतिसंक्षेप में बताइए।
  77. प्रश्न- आवश्यक वसीय अम्लों के बारे में बताइए।
  78. प्रश्न- किन्हीं दो वसा में घुलनशील विटामिन्स के रासायनिक नाम बताइये।
  79. प्रश्न बेरी-बेरी रोग का कारण, लक्षण एवं उपचार बताइये।
  80. प्रश्न- विटामिन (K) के के कार्य एवं प्राप्ति के साधन बताइये।
  81. प्रश्न- विटामिन K की कमी से होने वाले रोगों का वर्णन कीजिए।
  82. प्रश्न- एनीमिया के प्रकारों को बताइए।
  83. प्रश्न- आयोडीन के बारे में अति संक्षेप में बताइए।
  84. प्रश्न- आयोडीन के कार्य अति संक्षेप में बताइए।
  85. प्रश्न- आयोडीन की कमी से होने वाला रोग घेंघा के बारे में बताइए।
  86. प्रश्न- खनिज क्या होते हैं? मेजर तत्व और ट्रेस खनिज तत्व में अन्तर बताइए।
  87. प्रश्न- लौह तत्व के कोई चार स्रोत बताइये।
  88. प्रश्न- कैल्शियम के कोई दो अच्छे स्रोत बताइये।
  89. प्रश्न- भोजन पकाना क्यों आवश्यक है? भोजन पकाने की विभिन्न विधियों का वर्णन करिए।
  90. प्रश्न- भोजन पकाने की विभिन्न विधियाँ पौष्टिक तत्वों की मात्रा को किस प्रकार प्रभावित करती हैं? विस्तार से बताइए।
  91. प्रश्न- “भाप द्वारा पकाया भोजन सबसे उत्तम होता है।" इस कथन की पुष्टि कीजिए।
  92. प्रश्न- भोजन विषाक्तता पर टिप्पणी लिखिए।
  93. प्रश्न- भूनना व बेकिंग में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
  94. प्रश्न- खाद्य पदार्थों में मिलावट किन कारणों से की जाती है? मिलावट किस प्रकार की जाती है?
  95. प्रश्न- मानव विकास को परिभाषित करते हुए इसकी उपयोगिता स्पष्ट करो।
  96. प्रश्न- मानव विकास के अध्ययन के महत्व की विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
  97. प्रश्न- वंशानुक्रम से आप क्या समझते है। वंशानुक्रम का मानवं विकास पर क्या प्रभाव पड़ता है?
  98. प्रश्न . वातावरण से क्या तात्पर्य है? विभिन्न प्रकार के वातावरण का मानव विकास पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा कीजिए।
  99. प्रश्न . विकास एवं वृद्धि से आप क्या समझते हैं? विकास में होने वाले प्रमुख परिवर्तन कौन-कौन से हैं?
  100. प्रश्न- विकास के प्रमुख नियमों के बारे में विस्तार पूर्वक चर्चा कीजिए।
  101. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
  102. प्रश्न- बाल विकास के अध्ययन की परिभाषा तथा आवश्यकता बताइये।
  103. प्रश्न- पूर्व-बाल्यावस्था में बालकों के शारीरिक विकास से आप क्या समझते हैं?
  104. प्रश्न- पूर्व-बाल्या अवस्था में क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते हैं?
  105. प्रश्न- मानव विकास को समझने में शिक्षा की भूमिका बताओ।
  106. प्रश्न- बाल मनोविज्ञान एवं मानव विकास में क्या अन्तर है?
  107. प्रश्न- वृद्धि एवं विकास में क्या अन्तर है?
  108. प्रश्न- गर्भकालीन विकास की विभिन्न अवस्थाएँ कौन-सी हैं? समझाइए।
  109. प्रश्न- गर्भकालीन विकास को प्रभावित करने वाले विभिन्न कारक कौन से है। विस्तार में समझाइए |
  110. प्रश्न- गर्भाधान तथा निषेचन की प्रक्रिया को स्पष्ट करते हुए भ्रूण विकास की प्रमुख अवस्थाओं का वर्णन कीजिए।.
  111. प्रश्न- गर्भावस्था के प्रमुख लक्षणों का उल्लेख कीजिए।
  112. प्रश्न- प्रसव कितने प्रकार के होते हैं?
  113. प्रश्न- विकासात्मक अवस्थाओं से क्या आशर्य है? हरलॉक द्वारा दी गयी विकासात्मक अवस्थाओं की सूची बना कर उन्हें समझाइए।
  114. प्रश्न- "गर्भकालीन टॉक्सीमिया" को समझाइए।
  115. प्रश्न- विभिन्न प्रसव प्रक्रियाएँ कौन-सी हैं? किसी एक का वर्णन कीएिज।
  116. प्रश्न- आर. एच. तत्व को समझाइये।
  117. प्रश्न- विकासोचित कार्य का अर्थ बताइये। संक्षिप्त में 0-2 वर्ष के बच्चों के विकासोचित कार्य के बारे में बताइये।
  118. प्रश्न- नवजात शिशु की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन करो।
  119. प्रश्न- नवजात शिशु की पूर्व अन्तर्क्रिया और संवेदी अनुक्रियाओं का वर्णन कीजिए। वह अपने वाह्य वातावरण से अनुकूलन कैसे स्थापित करता है? समझाइए।
  120. प्रश्न- क्रियात्मक विकास से आप क्या समझते है? क्रियात्मक विकास का महत्व बताइये |
  121. प्रश्न- शैशवावस्था तथा स्कूल पूर्व बालकों के शारीरिक एवं क्रियात्मक विकास से आपक्या समझते हैं?
  122. प्रश्न- शैशवावस्था एवं स्कूल पूर्व बालकों के सामाजिक विकास से आप क्यसमझते हैं?
  123. प्रश्न- शैशवावस्थ एवं स्कूल पूर्व बालकों के संवेगात्मक विकास के सन्दर्भ में अध्ययन प्रस्तुत कीजिए।
  124. प्रश्न- शैशवावस्था क्या है?
  125. प्रश्न- शैशवावस्था में संवेगात्मक विकास क्या है?
  126. प्रश्न- शैशवावस्था की विशेषताएं क्या हैं?
  127. प्रश्न- शैशवावस्था में शिशु की शिक्षा के स्वरूप पर टिप्पणी लिखो।
  128. प्रश्न- शिशुकाल में शारीरिक विकास किस प्रकार होता है।
  129. प्रश्न- शैशवावस्था में मानसिक विकास कैसे होता है?
  130. प्रश्न- शैशवावस्था में गत्यात्मक विकास क्या है?
  131. प्रश्न- 1-2 वर्ष के बालकों के संज्ञानात्मक विकास के बारे में लिखिए।
  132. प्रश्न- बालक के भाषा विकास पर टिप्पणी लिखिए।
  133. प्रश्न- संवेग क्या है? बालकों के संवेगों का महत्व बताइये।
  134. प्रश्न- बालकों के संवेगों की विशेषताएँ बताइये।
  135. प्रश्न- बालकों के संवेगात्मक व्यवहार को प्रभावित करने वाले कारक कौन-से हैं समझाइये |
  136. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास से आप क्या समझते है। पियाजे के संज्ञानात्मक विकासात्मक सिद्धान्त को समझाइये।
  137. प्रश्न- संज्ञानात्मक विकास की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  138. प्रश्न- दो से छ: वर्ष के बच्चों का शारीरिक व माँसपेशियों का विकास किस प्रकार होता है? समझाइये।
  139. प्रश्न- व्यक्तित्व विकास से आपका क्या तात्पर्य है? बच्चे के व्यक्तित्व विकास को प्रभावित करने वाले कारकों को समझाइए।
  140. प्रश्न- भाषा पूर्व अभिव्यक्ति के प्रकार बताइये।
  141. प्रश्न- बाल्यावस्था क्या है?
  142. प्रश्न- बाल्यावस्था की विशेषताएं बताइयें।
  143. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में खेलों के प्रकार बताइए।
  144. प्रश्न- पूर्व बाल्यावस्था में बच्चे अपने क्रोध का प्रदर्शन किस प्रकार करते हैं?

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